कार्ल मार्क्स / दोपदी सिंघार / अम्बर रंजना पाण्डेय
एक मुसलमानी भाषा की कविता
उन्होंने सुनाई।
मैं नहीं कर सकती ये 'तमाशे, माशूक की कविता'
तो बोले, ग़ालिब का है यह शेर ।'
पूछा मैंने, 'क्या बहुत बड़े कवि थे ग़ालिब जी?' '
दुनिया के सबसे बड़े कवि है ग़ालिब'.
'नहीं मुझे नहीं लिखनी इनके जैसी कविता ।
वो जो ऊँचे टाँड पर रखते हो तुम मोटी किताब
उस पर जो दाढ़ीवाले रिसि-मुनि की तस्वीर
उनकी कविता बतलाओ।'
हँस हँस बाबू लोट-पोट
'वो तो कार्ल मार्क्स है,
कविताई नहीं करते फिलोसोफर है'
'क्या डॉक्टर है?'
'डॉक्टर ही समझो उनको,
दुख से मुक्ति का उपाय बताते है ।'
'आप हमें मत बहलाओ ।'
आंबेडकर जी जैसे है मार्क्स ।'
'अच्छा क्या फॉरेन में भी शुडूल कास्ट होती है?'
'दबे, कुचले लोग दुनिया में जहाँ तहाँ है,'
तबसे मैंने मार्क्स बाबा की राहों पर
ठाना।