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कालान्तर निद्रा के बाद / प्रमोद धिताल / सरिता तिवारी

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कितनी भयानक बात है
अपने ही चेहरे से घबरा जाना

कालान्तर निद्रा के बाद
अचानक जागकर देखना
पूरे सहर की गन्दगी
अपने ही माथे के रास्ते बह रहा
इन्सानी मल
थूक और उल्टी
ख़ून से सने हुए सेफ्टी पैड
अस्पताल से निकला हुए दुर्गन्धित नाले
और उसी में मिल कर बहता आया
हड्डी–मांस का कच्चा रस

क्या ये मेरी ही आँखें हैं
या हैं लोगों के सहस्र आँसुओं के समुद्र?
ये किसके जीवाश्म हैं मेरे अन्दर चल रहे?
क्या हैं ये चीज़ें सतह में उतर रही?
लोगों की स्मृति से गायब
कोई त्रासद लोक कहानी
या इतिहास के पृष्ठ में चढ़ाने के लिए छूटा हुआ बयान?
कैनवास से उतरा हुआ बेवारिस रंग
या किसी का हस्ताक्षर दावा न किया हुआ
कविता की पाण्डूलिपि?

कितना भयानक होता है
न देखना
अपने ही छाया के ऊपर
कौन कर रहा है बलात्कार?

किस तलवार से काटी जा रही है मेरे गालों की सुन्दरता?
किस बन्दूक़ से दाग़ी जा रही है मेरे विवेक की सत्ता पर?
लिखी जा रही है किन हाथों से मेरे भाग्य की किताब?

मैं पहचानती हूँ उनके चेहरे
मेरी आँख के तालाब में
किस–किस ने साफ़ किए खुकुरी<ref>नेपाली मौलिक हथियार।</ref>
किस–किस ने किए वीर्य पतन
कौन–कौन डूब कर निकले
और किए अपने जीवन-भर के ‘पाप मोचन’

नहीं चाहिए अब कोई मंजूश्री<ref>बौद्ध धर्मग्रन्थ में उल्लेखित एक बुद्ध। जनश्रुति के अनुसार प्राचीन समय में समुची काठमाण्डू उपत्यका एक विशाल तालाब हुआ करती थी ।सन्त मन्जुश्री ने अपनी दिव्य तलबार से चोभार नाम की छोटी पहाड़ को काटकर तालाब का पानी बाहर निकालने के बाद काठमाण्डू बस्ती योग्य बन गई।</ref>
मैं स्वयं करती हूँ मेरी अभिशप्त आँख का उद्धार
लेती हूँ स्वयं वह मायावी खड़ग<ref>प्राचीन समय में युद्ध लड़ने के लिए प्रयोग किए जाने वाला एक हथियार।</ref>
बहा देती हूँ आँखों के किनारे से
अवसाद का चक्र दुहराते रहने वाले
खलनायकों की ख़ूनी मुस्कान
और कुचलकर उनके नंगे सीने में
फहराऊँगी अस्तित्व का स्वाधीन झण्डा

कितनी भयानक बात होती है
कालान्तर निद्रा के बाद जागते हुए
न पहचानना स्वयं को आर्इने में
और ढूँढ़ना
पुरानी डायरियों में
अपना ही नाम और वतन