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कालाहाण्डी-6 / चन्दन सिंह
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मुट्ठीभर भात
और थोड़ा-सा झोर के
पेट में जाते ही
वापस लौटने लगती है
इंसानियत
हर कौर के साथ
थाली में जो जगह ख़ाली होती है
झलकता है वहाँ
बेच दी गई बिटिया का
चेहरा
बकरियाँ
पुरखों की निशानियाँ
पानी की घूँट से
कण्ठ नहीं
भीगती हैं आँखें