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कालिमा / विजय चोरमारे / टीकम शेखावत
Kavita Kosh से
दीपक से
देवली होती है श्यामल
लालटेन का काँच भी
हो जाता है काला-स्याह
लाल
सिन्दूरी
समई से
पूजाघर स्याह हो जाता है
कोई भी
उजाला
क्यों नहीं मिलता
बग़ैर कालिमा के !
मूल मराठी से अनुवाद — टीकम शेखावत