भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
काळ में गांव / निशान्त
Kavita Kosh से
देखण नै काळ में
गांव रा हाल
आयो हूँ
गांव में
खेत पड़्या है खाली
अेक-दो मिनखां रै सिवा
गुवाड़ ई है सूनो
बाड़ा जका पसुवां सूं
भर्योड़ा निजर आंवता
भभाका मारै
पण कुंवै रो
पणघट जरूर भर्यो है
क्यूंकै धरती रो भीतर
अजे तांई हर्यो है
रान नै अेक घर में
लुगायां
गावै सुवटिया
सोचूं-
जीवण-राग नै
मार कोनी सकै
काळ ई।