भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
काळ रा काळा हाथ / राजेन्द्र जोशी
Kavita Kosh से
इण स्हैर रो टैम
कुण जाणै आज
इणनै क्यांरी दसा चालै
कोई नीं देखै
काळ आयग्यो
भरी दुपारी
चढतै सूरज
काळ रा काळा हाथां
कब्रिस्तान अर
समसाण बणग्यो
स्हैर रै अेन बिचाळै।
उण काळा हाथां नै
कुण बणावै
बांनै काळ कद आवैला!
काळ रै काळा हाथां नै
भट्टियां भेळै करो नीं
काळ रा देवता।