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काळ हाथीड़ो / कन्हैया लाल सेठिया

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घूमै
मदमस्त
चिंगर्योड़ै
हाथी सो काळ,
फिरै चींथतो
घोटां पोटां
आयोड़ी खेज्यां,
उठा’र
अदीठी सूंड
पीग्यो औसरतो बादळ
पड़्यो
उपाड़्योड़ो
खेत रो रूखाळो
अड़वो,
दबग्या उघड़ता चिंयां
नान्ही कूंपळां
अणदेखी लीद रै हेटै,
बोलै
साव सूनी
ढावयां में भूत,
कठै स्यूं आयो
चाणचक
भर्यै भादवै
ओ नास पीट्यो ?
टूटग्यो
समै रो सपनो,
बैठगी
आ’र
आंख में
नागी साच
भूख !