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काश / अमरजीत कौंके
Kavita Kosh से
मेरा प्यार
तुम पर
इस तरह बरसता है
जैसे किसी पत्थर पर
लगातार
कोई झरना
गिरता है
काश !
तुम्हें कभी
बारिश में
किसी वृक्ष की भाँति
भीगने की
कला आ जाए ।
मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा