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काश पूछे ये चारागर से कोई / शहरयार

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काश पूछे ये चारागर से कोई
कब तलक और यूँ ही तरसे कोई

कौन सी बात है जो उसमें नहीं
उसको देखे मेरी नज़र से कोई

सच कहे सुन के जिसको सारा जहां
झूठ बोले तो इस हुनर से कोई

ये न समझो कि बेज़बान है वो
चुप अगर है किसी के डर से कोई

हिज्र की शब हो या विसाल की शब
शब को निस्बत नहीं सहर से कोई।