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कासी से बर आयल, दुआरि बीच ठाढ़ भेल हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कासी सेॅ बर आयल, दुआरि बीच ठाढ़ भेल हे।
केहिं अरेखल<ref>‘परेखल’ का अनुरणानात्मक प्रयोग</ref> परेखल<ref>देखा</ref>, केहिं हुँकारी<ref>हामी भरना</ref> देल हे।
बभना अरेखल परेखल, चाचा हुँकारी देल हे॥1॥
लौआ<ref>नाई</ref> के मारब, बाभन गरियायब, चाचा क देस निकाल हे।
सेहो सुनि मनायनी मंडिल<ref>घर का भीतरी भाग; कोहबर; मंदिर</ref> घर पैसल, ठोंकी लेल बजर केबार हे॥2॥
आइ हे माइ हे, पर हे परोसिन, अम्माँ के देहो ने बुझाय हे।
हमरा लिखल छै तपसी भिखारी, लिखल मटल न जाय हे॥3॥
सेहो सुनि मनायनी माड़ब चढ़ि बैठल, हूबे<ref>होने लगा</ref> लागल बिधि बेवहार ह।
सेहो सुनि मनायनी, हाला डाला<ref>बाँस की कमाचियों की बनी हुई एक प्रकार की रंगीन गोलाकार टोकरी, जिसमें मंगल-कार्य की सामग्री रखी रहती है </ref> जोड़ल, नेसल<ref>जलाया</ref> चौमुख दीप हे॥4॥
होएते भिनसरबा कोयली घमसान, सिरे परल सोहाग सेनूर हे॥5॥

शब्दार्थ
<references/>