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कितनी बड़ी है यह उदासी / फ़ेर्नान्दो पेस्सोआ
Kavita Kosh से
कितनी बड़ी है यह उदासी और
यह कड़वाहट जो झोंक देती है
हमारी नन्ही ज़िन्दगियों को
एक कोलाहल में !
ऐसा कितनी बार होता है
कि दुर्भाग्य
क्रूरता से हमें कुचल डालता है !
सुखी है वह जानवर, स्वयं से अनामित,
जो हरे-हरे खेतों में चरता है,
और ऐसे प्रवेश करता है मृत्यु में
जैसे कि वह उसका घर हो ;
या वह विद्वान जो, अध्ययन में डूबा,
अपने निरर्थक संन्यासी जीवन को
उठा लेता है हमारे जीवन से बहुत ऊपर,
धुएँ की तरह,
जो अपने विघटित होते हाथों को
उठा देता है एक ऐसे स्वर्ग की ओर
जिसका अस्तित्व ही नहीं है ।