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किन सज़ाओं तक मुझे मेरी ख़ता ले जाएगी / नूर मुहम्मद `नूर'

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किन सज़ाओं तक मुझे मेरी ख़ता ले जाएगी
और कितनी दूर तक मुझको वफ़ा ले जाएगी

मुझको अपने रास्ते का इल्म<ref>ज्ञान </ref> है अच्छी तरह
क्यों कहीं मुझको कोई पागल हवा ले जाएगी
 
मैं तो अपनी कोशिशों से जाऊँगा जंगल के पार
आपको उस पार क्या कोई दुआ ले जाएगी?

दूर तक सहराओं<ref>रेगिस्तानों </ref> में पानी की ख़ातिर <ref>के लिए</ref>दोस्तो
मुझको मेरी प्यास की क़ातिल अदा ले जाएगी

ज़िंदगी जब-जब भी आएगी मेरी दहलीज़ पे
माँग कर मुझसे वो थोड़ा हौसला ले जाएगी

‘नूर’ इस अल्हड़ पवन को इस तरह से साध तू
दूर तक दुनिया में वो तेरा कहा ले जाएगी

शब्दार्थ
<references/>