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किनका के हाथें दही रे मटुकिया / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बड़े भाग्य से सीता को वर के रूप में राम प्राप्त हुए हैं। इससे सीता हर्षित है। इसके अतिरिक्त दही की मटुकी गृहदेवता के पास तथा सिंदूर की पुड़िया खोंयछे में रखने का उल्लेख इस गीत में हुआ है।

किनका<ref>किसके; किनके</ref> के हाथें दही रे मटुकिया<ref>छोटा मटका; दही का पात्र</ref>, किनका के हाथें सिनुर पुरिया<ref>पुड़िया</ref> गे माई।
बड़ा रे जतन<ref>यत्न</ref> सीरीराम, सीता के मन बड़ हरसित हे॥1॥
रामजी के हाथें दही रे मटुकिया, सीता के हाथें सिनुर पुरिया गे माई।
बड़ा रे जतन सीरीराम, सीता के मन बड़ हरसित हे॥2॥
कहाँ में राखब दही रे मटुकिया, कहाँ राखब सिनुर पुरिया गे माई।
बड़ा रे जतन सीरीराम, सीता के मन बड़ हरसित हे॥3॥
सीरा<ref>कुलदेवता का स्थान</ref> आगु<ref>आगे</ref> राखब दही रे मटुकिया, खेएँछा<ref>मुड़ा हुआ आँचल</ref> में राखब सिनुर पुरिया गे माई।
बड़ा रे जतन सीरीराम, सीता के मन बड़ हरसित हे॥4॥

शब्दार्थ
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