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किरकिरी / माया मृग
Kavita Kosh से
चादर
टांक दो ना !
ढांक लें
कुछ पल को
अपना नग्नाता जिस्म !
कभी यहां से
कुछ-कुछ झांकता
दूधिया जिस्म
किरकिरी है
काली-बड़ी खूंखार आँखों की।
बदन पर
काला धब्बा पड़ ही जाए
इससे पहले
एक काली सी चादर ओढ़
मुझे
इस बदनाम बस्ती में
रात गुजार देनी है !