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किरड़कांटियो / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
देख’र
किरड़कांटियो
पड़ ज्योतो
सोच में
बाळक मन
किंयां बदळै
चनेक में
ओ रंग ?
पण देख’र अबै
मिनखां रो ढंग
हुग्यो
म्हारो इचरज
बेरंग !