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किल्लत छैलोॅ देश / कनक लाल चौधरी ‘कणीक’

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देश के हालत लटर-पटर छै, नैं सुधरै के जोग
सभ्भे तरफें किल्लते-किल्लत केना केॅ बचतै लोग?

एक तरफ मंहगाई तोड़ेॅ डांड़ा केरोॅ हड्डी
नयी-नयी बेमारी अैलै जेकरोॅ खतरा बड्डी
दोसरोॅ तरफ गरीबीं कखनू हटवोॅ इनकारै छै
बेरोजगारी बड्डी बढ़लै सभ्भैं स्वीकारै छै
देश चलावै बाला के मन भरलोॅ छै बैमानी
केना केॅ बचतै गद्दी बांकी कतोॅ देश के हानी
भोटवा टानै खातिर कत्तेॅ मारै छै वें धप्पा
गद्दी भेटथैं, टेढ़ोॅ चाल चलै छै जेना सप्पा

कथनी-करनी मेल कहाँ छै? खाली धोॅन हंसोतोॅ
भीतरे-भीतर आगिन-जरैतै, ऊपरे-ऊपर रोतोॅ
कानू ठो डरगुहैॅ खातिर बनवैनेॅ छै नेता
छान तोड़ने खुदर निकलै छै कानून केरोॅ बिजेता

बिना तिलक के बीहा बताय केॅ पहुंचै नेता लोग
साँसे फिल्मिस्थानें बालां चाखै छप्पन-भोग

फर्जी डिगरी, घूस-फौव्वारा केरोॅ मधुर मिलन छै
धर्मराज-हिस्सा-जमदूतोॅ सें उघवाय चलन छै
सोॅ दू सोॅ पाबै के खातिर एम.ए. के छै सेना
दश हजार फर्जी वाला केॅ पूरै नहीं महिना

पढ़ला-लिखना बेरोजगारें डालेॅ लागलै डाका
अनपढ़भी रोजगारियाँ खोजै कहाँ वें राखतै टाका?
एन्हों बिसमता समाज में पैन्हें कभी नैं छेलै
कौआँ करै छै ठाठ-अमीरी, हंस दलिद्दर भेलै।

धरम-जात के जहर पिलाय केॅ राज चलाबै ज्ञानी
गोन्डा, अपराधी जितबाय केॅ प्रजा पिलावै पानी
चारो तरफें लूट, पिफरौती, हत्या के छै छाया
बलात्कार, दंगा-फसाद के छै विकराली माया

के केकरा पेॅ दया देखैतै-सभ्भै केॅ लागलै रोग
कोनी दिशा में देश ठो चललैत्र होलै अन्हरिया योग

पछियारी देशोॅ के तरीका छवारिकोॅ में अैलै
रहन-सहन-फैसन देशोॅ के आपन्है आप नुकैलै
बुढ़भा-बुढ़िया, बाप-माय बेटा देखी कानै छै
एक्को बात पुरनका वाला नैं कटियो मानै छै

निम्मर-काठी देखि सताय छै भुखलै राखै बेटां
मरला पर फकदोल सजावै, धोॅन लुटावै सभ टा
कोय भागै छै महानगर लै-लै केॅ आपनोॅ बीबी
माय-बापोॅ सें आँख मुनै छै, मुंहमां लै छै सीबी

सगरो ओझराहट लागै छै, ग्रहण देखाबै योग
”किल्लत छैलोॅ देश“ लगै छै केना केॅ बचतै लोग?