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किस मोड़ पर / पद्मजा शर्मा
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मैं आवाज हूँ
दूर तक चली गई तो क्या
गई थी जहाँ से
टकराकर वहीं लौट आऊँगी।
मैं पवन हूँ
बहना मेरा धर्म है
आज रूक गई तो क्या कल ख़ुद बहूँगी
और तुम्हें भी बहा ले जाऊँगी
नदी हूँ अल्हड़
सिर्फ मैं ही जानती हूँ कि कब कहाँ मुडूंगी
और किस मोड़ पर आकर
कहाँ ठहर जाऊँगी
मैं रस्सी हूँ बलवाली
ऐंठ गई तो खुद बँधूं न बँधूं
तुम्हें जरूर बाँध जाऊँगी
मैं औरत हूँ
अँधेरा मत कहो मुझे
रोशनी के कण-कण में समाकर
धरती से आकाश तक फैल जाऊँगी।