किसलिए मिलन अब हो गुपचुप / गिरधारी सिंह गहलोत
किसलिए मिलन अब हो गुपचुप
क्यों सपनों का बलिदान करें
लिख लिख पढ़ पढ़ पाती अब तक
कट गया बहुत सा प्रीत सफर
क्यों दूर दूर अब है रहना
जब चलना ही है एक डगर
काटें क्यों बाकी जीवन अब
विरहा की लंबी रातों सा
जो बसा कल्पना में अपनी
निर्माण करें छोटा सा घर
किस तरह बनेगी राह सुगम
इस ओर जरा सा ध्यान धरें
किसलिए मिलन अब हो...
अभिलाषाओं का मीत दमन
अब नहीं तनिक भी है संभव
जब पास नहीं हो तुम मेरे
है व्यर्थ सभी ये धन वैभव
निष्ठुर जगवालों के बंधन
अब रोक नहीं सकते हमको
दो कदम निभाना साथ तुम्हें
आरम्भ करें हम जीवन नव
आओ मिलकर अरमानों की
हम ऊंची एक उड़ान भरें
किसलिए मिलन अब हो...
फिर लौट नहीं ये पल आने
यदि यौवन के दिन गए बीत
आ जाओ जी लें हर इक पल
खोएं क्यों अवसर आज मीत
मन से तो कब के एक हुए
तन का ही मिलन अब है बाकी
नयनों का संगम हुआ बहुत
अधरों पर छेड़ें आज गीत
आओ जगवालों से क्यों कर
हम दो पंछी नादान डरें
किसलिए मिलन अब हो गुपचुप
क्यों सपनों का बलिदान करें