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किसान / रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'

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चौकिए मत
वह जो आ रहा है
मरियलसा
हड्डियों का ढाँचा मात्र
अर्ध नग्न, अर्धक्षुधित
चिर उपेक्षित
काँटों का ताज पहने
अपनों से छला गया
क्राँस की तरह हल को
अपने कंधों पर उठाए
ईसा नहीं
एक किसान है
(साकार हिंदुस्तान है)
कर्ज में जनम लेना
कर्ज में बड़ा होना
और कर्ज में ही मर जाना
जिसकी नियति है,
अपनी पहचान है
रोज मरमर कर जीना
जिसका विधान है
जिसका खून-पसीना
दुनिया की गति है,
बड़ों की शान है
और जो हमारे देश में
आजकल
चक्र में फँसा हुआ
सिर्फ राजनीति का निशान है।