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किसी बिछुड़े ने / सुनीता जैन

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बहुत साल तुम्हारे साथ चली
अब रुके तो उठ-उठ के गिरी
हरसड़क है नई
हर गली कुछपराई
किसी बिछुड़े ने
गले लग न कहा:
‘देर से सही
तू लौट तो आई’