भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किसी सूरत हमारा परचमे-दिल खम नहीं होता / शोभा कुक्कल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसी सूरत हमारा परचमे-दिल खम नहीं होता
जो तूफानों में झुक जाता है वो परचम नहीं होता

तेरी बातें बहुत अच्छी हैं सुनने में मगर हमदम
जो इन पर गौर फरमाएं तो इनमें दर नहीं होता

कहें जब दोस्तों से इसका कोई हल निकलता है
छुपाने से तो ग़म बढ़ता है हरगिज़ कम नहीं होता

महब्बत वो ख़ज़ाना है लुटाएं जिसको जी भर कर
बढ़ा करता है ये धन बांटने से कम नहीं होता

समय के साथ इसकी ताबनाकी घटती जाती है
चिराग़े-उम्र किसका है कि जो मद्धम नहीं होता

तड़पता हो कोई ग़म से मगर बेरहम दुनिया में
किसी का दामने दिल आंसुओं से नम नहीं होता

पहनते हैं सदा खादी जो सच्चे देश सेवक हैं
कि बढ़कर अपनी खादी से कोई रेशम नहीं होता।