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किस्सा गोपीचंद - 7 / करतार सिंह कैत

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गोपी चन्द मेरे लाल, करिये टाल तूं फिलहाल
बाहण कै जाणे की...टेक

वा तै बाहण तेरी रे माँ जाई सै
तूं भी ऐकला ए उसका भाई सै
तेरा देख कै भंगवा भेष लागैगी ठेस
ना करिये कार क्लेश जगाणे की
सुण गोपी चन्द...

ना उसका मान घटाइये आड़ै जाकै नै
वा तनै देख मरैगी विष खाकै नै
उसकै बीर चुभोवैगी तीर
न्यू कहैगी ए तेरा बीर
बण्यां हे फकीर या बात उलाहणे की
सुण गोपी चन्द...

मनै देख मरी री मेरी ब्याही ना
तों खुद मरी मेरी जननी माई ना
पाल्या आप लड़ा कै लाड़
दिया घर तै काढ़
दे दी कार मांगने खाणे की
सुण गोपी चन्द...

इब ना रह यारी किसे तै कोई नाता सै
ना कोए बाहण मेरी ना कोए माता सै
दाता सतगुरु कर देंगे पार
लई मन मैं धार
तनै करतार हरि गुण गाणे की
सुण गोपी चन्द...