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कीर्तिशेष महादेवी के प्रति / विमल राजस्थानी
Kavita Kosh से
छोड़ पीछे वेदना, दुख-शोक को
कौन जाने किस अजाने लोक को
गयी वह करूणामयी गोदावरी
व्योम-कुज्जों में कहीं छिप गा रही
मेघ-पंखों पर मुदित मँड़रा रही
दर्द की धुन, पीर की आसावरी
नीर से थी भरी दुख की बादली
आधुनिक मीरा, विरह में बावली
दीप की जलती शिखा आभा भरी
स्नेह करूणा-कोष की धु्रवस्वामिली
सदानीरा, काव्य-घन-सौदामिनी
सीकरों में ही रही ढलती सदा
रखी जिसने गीत की दुर्वा हरी