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कुछ अशआर / फ़रीद क़मर
Kavita Kosh से
अँधेरी रात में तारे चमक जायें तो अच्छा हो,
बहारों में गुलाब अब के महक जायें तो अच्छा हो.
बलंदी की हवस में आशियाँ जो भूल बैठे हैं,
परिंदे अब वो उड़ते उड़ते थक जायें तो अच्छा हो.
मेरी खुशियों से तेरी ज़िन्दगी गुलज़ार हो जाये,
तेरे ग़म से मेरी आँखें छलक जायें तो अच्छा हो.