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कुछ छूट गई खबरें / प्रमोद कुमार तिवारी

Kavita Kosh से
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टूटा कंधा लिए खड़ा बरगद
अवाक् नजरों से देख रहा
दो पैरों वाले जीव को
जिसकी मिसाइल ने भंभोड़ दिया है
उसका सीना।
जिसका सारा बीया बह गया था बाढ़ में
उस किसान ने लिया कर्ज
फिर से डाले बीज
और जी जान से लगा है रोपनी की तैयारी में।
कल अनु ने साफ-साफ कह दिया
वह भी सोनू के बराबर खीर लेगी
वरना नहीं खाएगी।
नदी में बहा जा रहा था एक कद्दू
कौआ एक साथ ले रहा था
कद्दू और नौकायन का स्वाद।
अपने बाप की साइकिल को
कैंची दौड़ाता 'रजुआ'
एक झटके में पछाड़ दिया
छोटे साहब की 'रेसर' को।
'फटे होंठ पर साग के नोने' जैसी
प्रेमिका की याद को
लगातार चभुलाता रहा,
दिल्ली में प्रतियोगिता दर्पण पढ़ता एक युवक।
युद्ध के चर्चित टैंक के
भारी पाँव को छेदकर
लहरा रही है दूब
ठाट से।
एक जिद्दी कवि रात भर रचता रहा कविता
इस ठसक में
कि जरूर पड़ेगा इतना फर्क
जितना पड़ता है
किसी रातरानी के खिलने
या जुगनू के चमकने से।