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कुछ तो करो / अनिरुद्ध नीरव
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पेड़ पिंजर बन गया
कुछ तो करो
वक़्त कोटर खन गया
कुछ तो करो
भुंज गया तन
शाख भी
तड़के निरन्तर
देह का
सारा तरल
कड़के निरन्तर
लो कुल्हाड़ा तन गया
कुछ तो करो
गिद्ध बैठा
शाख पर
असगुन उगाए
और नीचे
दीमकों ने
गढ़ बनाए
क्रोड़ विषधर जन गया
कुछ तो करो
पीड़ पपड़ाई हुई
काली पड़ी है
एक पत्ता
शेष है
जाली पड़ी है
चैत आ कर छन गया
कुछ तो करो ।