भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुछ नहीं कर पाएंगे / विजयदेव नारायण साही
Kavita Kosh से
एक थरथराहट के बाद
चक्का चलता-चलता बन्द हो गया
किसी ने दूसरे कमरे से पुकारा
क्या हुआ,
आवाज़ क्यों नहीं आ रही है?
मैंने कहा
बत्ती बुझ गई है
शायद हम लोग आज कुछ नहीं
कर पायेंगे।