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कुछ फरेबों ने पहनकर सादगी / पुरुषोत्तम प्रतीक
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कुछ फ़रेबों ने पहनकर सादगी
नाम अपना रख लिया है आदमी
वह ग़रीबी बेचने निकला मगर
रोटियों में बेच आया ज़िन्दगी
कौन रखता है अँधेरे सामने
जब कभी हम चाहते हैं रोशनी
आदमीयत का नशा उतरता अगर
देख लेंगे ज़िन्दगी को बानगी
जिस नदी के तीर पर था वो कभी
उस नगर के पास थी सूखी नदी
ग़म सभी मेरे पुराने दोस्त हैं
हाँ, उन्हीं के बीच हूँ मैं आज भी
शायरी को माफ़ करना दोस्तो
मयकशी की बात होगी फिर कभी