भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुछ मक़्ते / यगाना चंगेज़ी
Kavita Kosh से
हिजाबो-नाज़ बेजा ‘यास’ जिस दिन बीच में आया।
उसी दिन से लड़ाई ठन गई शेख़ो-बिरहमन में॥
यहीं से सैर कर लो ‘यास’ इतनी दूर क्यों जाओ।
अदम आबाद का डांडा मिला है कूए-क़ातिल से॥
क्या कोई पूछनेवाला भी अब अपना न रहा।
दर्दे-दिल रोने लगे ‘यास’ जो बेगानों से॥