कुछ यूँ ही मैं बड़ा हुआ / वोल्फ़ वोन्द्राचेक / उज्ज्वल भट्टाचार्य
उस समय मैंने कुछ सोचा भी नहीं था ।
जब पानी बरसता था, सोचता था, पानी बरस रहा है
दुनिया में हर कहीं । हवा रुक जाने पर मैं सोचता था,
अब हवाई जहाज़ गिर पड़ेंगे और सेब ।
गिरे हुए सेब चुनते वक़्त मेरी नज़रें मौसी के चूतड़ों पर जमी होती थीं
और मैं सोचता था, अब तो पागलखाने में जाना पड़ेगा ।
मैं जंगल में जाता था, फूलों से नफ़रत थी
और चाहता था कि उम्र बढ़ जाए ।
वही किताबें पढ़ता था, जो समझ में नहीं आती थीं ।
मेरा क़द काउबॉय की कमर से ऊपर नहीं जाता था,
जब पहली बार वो अहसास हुआ था और मैंने प्यार के बारे में सोचा
और हाथ से काम निपटा दिया,
पहली बार ।
हाँ, दर्द हुआ था.
सपने देखते-देखते मेरी नाक में घाव हो गए ।
चुटकुलों का मैं सत्यानाश करता रहा, मज़ा बिगाड़ता रहा
और इतवार को चर्च के स्कूल के बदले फुटबॉल के मैदान में जाता रहा ।
ये वे दिन थे, जब भूखे कलाकार हुआ करते थे ।
मैं बेवजह अचानक मरना चाहता था,
दिमाग़ में दो हाथ ढूँढ़ता था,
ताकि भूखे कलाकारों से हाथ मिलाए जा सकें;
तब भी मैं रोमाण्टिक था,
जंगल में जाता था, फूलों से नफ़रत थी
और कवि बनना चाहता था —
लेकिन कुछ हो नहीं पाया ।
मूल जर्मन से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य