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कुछ शब्द / रुस्तम
Kavita Kosh से
कुछ शब्द
तो बच ही जाएँगे
हज़ार-हज़ार शब्दों में से।
अब भी तो, बाबुश्का,
अब यहाँ हैं तुम्हारे होंठ,
ये,
यहाँ,
मैं सुन रहा हूँ इन्हें
प्रेम, मृत्यु या जुदाई
उच्चारते हुए।
प्रेम, जो कभी
मरता नहीं।
मृत्यु, जो कभी
टलती नहीं।
जुदाई जो
यह कविता है।
कुछ शब्द,
और कितना दुख।