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कुदरत रै आगै / निशान्त
Kavita Kosh से
पाड़ोसी बगा देवै
गळी में थोड़ो-घणो पाणी
तो आपां
मरण नै त्यार हो जावां
पण मेह रै पाणी नै
जूतियां खोल’र
लांघ ज्यावां ।