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कुम्हार अकेला शख्स होता है / शहंशाह आलम

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जब तक एक भी कुम्हार है

इस पूरी पृथ्वी पर

और मिट्टी आकार ले रही है

समझो कि मंगलकामनाएं की जा रही हैं


कितना अच्छा लगता है

जबकि मंगलकामनाएं की जा रही हैं

और इस बदमिजाज़ व खुर्राट औरत-सी

सदी में भी

कुम्हार काम भर मिट्टी ला रहा है


कुम्हार जिस समय बीड़ी पीता है

बीवी उसकी आग तैयार करती है

इतिहासकार इतिहास के बारे में

चिंतित होते हैं

श्रेष्ठजन अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने में

भिड़े होते हैं

अंधकार चीरने हेतु

अपने को तैयार कर रहा होता है कवि


कुम्हार अकेला शख्स होता है

जो पैदल-पुलिस के साथ

शिकारी कुत्तों की भीड़ देखकर

न तो बौखलाता है

न ही उत्तेजित होता है


हालांकि उसको पता है

उसके बनाए बर्तन

खिलौने कैमरामैन पुरुष-समूह अंतरिक्षयात्री

अबाबील व दूसरी चिड़िया

सब-सब

मौके की तलाश में हैं

किसी अन्य ग्रह पर चले जाने के लिए


कुम्हार अकेला शख्स होता है

जो नेपथ्य में बैठी उद्घोषिका से कहता है

हम मिट्टी से और मिट्टी के रंगवाली

पृथ्वी से प्रेम करते रहेंगे ।