भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुरार गाँव की औरतें-2 / देवमणि पांडेय
Kavita Kosh से
कुरार गाँव की औरतें
टी०वी० पर राम और सीता को देखकर
झुकाती हैं शीश
कृष्ण की लीलाएँ देखकर
हो जाती हैं धन्य
और परदे पर झगड़ने वाली औरत को
बड़ी आसानी से समझ लेती हैं बुरी औरत
वे पुस्तकें नहीं पढ़तीं
वे अख़बार नहीं पढ़तीं
लेकिन चाहती हैं जानना
कि उनमें छपा क्या है !
घर से भागी हुई लड़की के लिए
ग़ायब हुए बच्चे के लिए
या स्टोव से जली हुई गृहिणी के लिए
वे बराबर जताती हैं अफ़सोस
उनकी गली ही उनकी दुनिया है
जहाँ हँसते-बोलते, लड़ते-झगड़ते
साल दर साल गुज़रते चले जाते हैं
और वक़्त बड़ी जल्दी
घोल देता है उनके बालों में चाँदी