भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुर्सी / रामदरश मिश्र
Kavita Kosh से
जब वे लोग कुर्सी पर थे
तब ये लोग उन पर चिल्लाते थे
जब ये लोग कुर्सी पर हैं
तब वे लोग विरोध में चिल्ला रहे हैं
इनकी चीख से इनका कुछ नहीं बिगड़ता
बल्कि बनता ही जाता है
ये तो चक्की के पाट की तरह
बारी-बारी ऊपर-नीचे चलते रहते हैं
और जिस जन के हित में
ये परस्पर चिल्लाते हैं
उसे मजे से दलते रहते हैं।
20.9.2013