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कुलगुरु / मन्त्रेश्वर झा

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पूर्णिमाक चन्द्रमा केँ देखैत
जेना सूतल सँ अनायास
जगलाह कामनाथ आ बजलाह
साक्षात् हमर प्रेयसीक मुँहक
प्रतिबिम्ब थिकीह ई ललना।
नागनाथ छलाह अपन हारल, पत्नीक मारल
पीने छलाह बुत्त, बजलाह
‘धुत् ई ने कोनो प्रेमिका थिक ने ललना
ई थिक अल्हड़ अगराइत मधुशाला
आह, आइ जे रहितय धरती पर।
धूर्तेश छलाह एतबा काल चुपचाप ठाढ़
चमचागिरी करैत करैत
कोठा सोफा बनाय
अपन प्रभुत्व केँ करैत छलाह देखार।
से बजलाह खखारैत सभकेँ ललकारैत
अरे की बकर-बकर
करै जाइ छी अहाँ सभ अनेरे।
ई चन्द्रमा तऽ अछि दूनाम्वरी धूर्त,
ई तऽ कहिया सँ लुटबाले
पृथ्वी के खजाना
लगा रहल ए पृथ्वी के चक्कर
मुदा पृथ्वी अपनहुँ अछि चालू
अपने पथ पर चकरघिन्नी कऽ रहल ए अनवरत।
हरिहर तखन देखौलनि
अपन बुद्धिक दाबी
खोलैत अपन मुँहक रहस्यमय जाबी
चन्द्रमा तऽ छथि रत्नगर्भा
सोना चानी रत्न आ मणिकके खान
नहि करैत जाउ हिनकर क्यो अपमान।
चिकरैत बजलाह हरिहर,
अहाँके पता अछि
चन्द्रमाक तलसँ कतेक रत्न
अनलकए अमेरिका।
तेँ नरे सौंसे संसारके अपन
डालर के ससरफानी मे बन्हलक ए
एतबा काल चुप्पे रही हम सुनैत सभक प्रलाप
नरि रहल गेल तऽ लेलहुँ आलाप
चन्द्रमा तऽ छथि धरतीवासीक
कुलगुरु
निरंतर यैह चेतबैत जे
जे आइ पूर्ण अछि
से काल्हि भऽ जायत संपूर्ण
मुदा जे क्यो लागल रहत कर्तव्य पथ पर
धैर्य सँ अनवरत
से फेर फेर होयत पूर्ण
तथापि फेर सँ घटबाक डरसँ
अपन प्रकाश बाँटब नहि छोड़त
कतबो घटत बँटिते रहत प्रकाश
धरतीक ई कुलगुरु।