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कृतज्ञता / नंदकिशोर आचार्य
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कृतज्ञता हैं पेड़ की
फूल
रात भर झरते रहे हैं जो
उस धरती के लिए
खिल जो आई है उन में
धरती कृतज्ञ है पर
ख़ला की
ख़ुद में जो
उस को पिरोए है
जिस के लिए
फूल-सी खिल आई है
वह
कृतज्ञ है ख़ला ख़ुद भी
जिस में खिल कर
रूप करती है उसे धरती—
सूने को इक दुनिया बनाती है ।
—
7 जून 2009