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कृष्ण बजाते पाञ्चजन्य जब / बाबा बैद्यनाथ झा

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लिये तिरंगा हम हाथों में, युद्ध हेतु तैयार हैं।
कृष्ण बजाते पाञ्चजन्य जब, अरिदल हित तलवार हैं॥

जय जय भारत के नारे से, गुंजित पूरा देश है,
सजग रहो भारत के वासी, मिलता यह संदेश है।
छद्मवेशधारी दुश्मन भी, घूम रहे हैं पास में,
कभी नहीं खाएँ हम धोखे, पडे़ं नहीं विश्वास में।

किसी क्षेत्र में मिले चुनौती, हमको सब स्वीकार हैं।
कृष्ण बजाते पाञ्चजन्य जब, अरिदल हित तलवार हैं॥

रामकृष्ण की यह धरती है, परशुराम भी याद हैं,
यक्ष-युधिष्ठिर मध्य हुए थे, तत्वयुक्त संवाद हैं।
गीता का संदेश सुरक्षित, सदा बाँटते ज्ञान हम,
परम सिद्धि मिलने पर करते, कभी नहीं अभिमान हम।

ज्ञान बांटते आए जग को, करते पर उपकार हैं।
कृष्ण बजाते पाञ्चजन्य जब, अरिदल हित तलवार हैं॥

विश्व बंधुता लक्ष्य हमारा, टूटे दिल को जोड़ते,
प्रेम निभाने वाले का मन, कभी नहीं हम तोड़ते॥
सहिष्णुता का भाव बढ़े यह, सदा हमारा मंत्र है,
जनता निज प्रतिनिधि चुनती है, असली यह गणतंत्र है।

सर्वश्रेष्ठ भारत की हम सब, करते जय जयकार हैं।
कृष्ण बजाते पाञ्चजन्य जब, अरिदल हित तलवार हैं॥