केतकी फूलै फलै छै / राजकुमार
रोज आबै छै, मिलै छै
कोय भी मौसम हुवेॅ, उ रातरानी रं खिलै छै
रोज आबै छै, मिलै छै
खनु यहाँ छै खनु वहाँ छै चाल ओकरोॅ, ताल ओकरोॅ
कोन अहिनोॅ जगह बाँकी, जहाँ नै छै जाल ओकरोॅ
रूपसी अहिनों कि देखी, डार-पत्ता तक हिलै छै
रोज आबै छै, मिलै छै
नित नया पीड़ा परोसी केॅ, मधुर मुस्कान फेंकै
आँख सें घायल करी केॅ, तेग रोॅ संधान फेंकै
छै शिखर बनी केॅ अँटकलोॅ, चाहियौ केॅ नै गलै छै
रोज आबै छै, मिलै छै
फूँक छै बिटगोय केरोॅ, अमरलत्ता रं पसरलोॅ
कोय मायावी परी रं, छंद-छौनी पर उतरलोॅ
चेतना केॅ कुन्द करनें, छन्द-छौनी पर चलै छै
रोज आबै छै, मिलै छै
राग केॅ सौतिन बनैलें, तार सें बेतार होलोॅ
गंध पर अधिकार करलं, पाँव से पतवार होलोॅ
‘राज’ दिल पर दाँव खेली, केतकी फूलै-फलै छै
रोज आबै छै, मिलै छै