केना-केना लागै छै हमरा/ अनिरुद्ध प्रसाद विमल
छोड़ी केॅ गेल्होॅ जखनी सें, केना-केना लागै छै हमरा,
तन चंदन मन पाखी भेलै, जखनी सें हम्में छूलां तोरा ।
मन सूरज काँपी-काँपी साँझोॅ के ताकै निरयासी केॅ
सांवरी सांझ विरहाकुल भेलै, प्रीतम के जैतेॅ देखी केॅ ।
तहिये सें लागी रहलोॅ छै, सूना-सूना ई जग सारा ।
छोड़ी केॅ गेल्होॅ जखनी सें, केना-केना लागै छै हमरा ।
नीलकमल के आभा भी, जेकरा देखी लजावै छै ।
तोरोॅ ठोरोॅ के लाली सें उषा भी, आपनै मांग सजावै छै ।
देव स्वर्ग सें तोरेह लेली, फिरलै मारा-मारा ।
छोड़ी केॅ गेल्होॅ जखनी सें, केना-केना लागै छै हमरा ।
केना कहियौं तोहीं बोलोॅ, रसता भरलोॅ शूल ।
युग-युग सें ताकी रहलोॅ छी, तोरोॅ चंदनवर्णी धूल ।
द्रवित मन देखी केॅ हमरोॅ, कानै छै बदरा ।
छोड़ी केॅ गेल्होॅ जखनी सें, केना-केना लागै छै हमरा ।