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केले का पेड़ हाथी की याद / वीरेन डंगवाल
Kavita Kosh से
नीचे वाले पत्ते गाढ़े-हरे
झालर-झालर हुए मार बूंदों की खाकर
तुरही जैसा बंधा-बंधा
बढ़ रहा सुकोमल पात नवेला
उस पर देखो
एक काले मोटे चींटे की दौड़ अकेली
फूल खिलेगा फिर से वह सांवला-बैंजनी
सिकुड़े बक्कल वाला
रक्तिम घाव छिपाए
भीतर की परतों में
नोकीला-नतशिर केले का फूल सजीला !
लटका हुआ सूंड पर अपनी, कुल गुलदस्ता
अजब ढंग से याद दिलाएगा हाथी की
कैसी अजब याद वह हाथी की
खेलते हुए बच्चों के कलरव बीच
कॉलोनी के पार्क में
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