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केवल एक बात थी / कीर्ति चौधरी

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केवल एक बात थी

कितनी आवृत्ति

विविध रूप में करके तुमसे कही


फिर भी हर क्षण

कह लेने के बाद

कहीं कुछ रह जाने की पीड़ा बहुत सही


उमग-उमग भावों की

सरिता यों अनचाहे

शब्द-कूल से परे सदा ही बही


सागर मेरे ! फिर भी

इसकी सीमा-परिणति

सदा तुम्हीं ने भुज भर गही, गही ।