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केवल मेरे छूने भर से / विशाल समर्पित

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केवल मेरे छूने भर से, हद से ज़्यादा मचल गई हो
ओ! धरती की विश्वमोहिनी, तुम पहले से बदल गई हो

सम्बंधो की ओढ़ चुनरिया, जाने क्यों तुम ऐसे बदले
सही समय आ जाने पर प्रिय, मौसम खुद को जैसे बदले
जैसे गागर जल को बदले, बदले दल को काफ़िर जैसे
जैसे रूह देह को बदले, बदले राह मुसाफ़िर जैसे

गिरगिट जैसे रंग बदलकर, प्रिय मेरे तन मन को छलकर
सम्बंधो के रथ पर चढ़कर, बहुत दूर तुम निकल गई हो
ओ! धरती की विश्वमोहिनी, तुम पहले से बदल गई हो
केवल मेरे छूने भर से, हद से ज़्यादा मचल गई हो

मैंने सोचा अब भी दिल में, होगा संचित प्यार तुम्हारे
लेकिन मैं ये भूल गया था, बदल चुके अधिकार तुम्हारे
प्यार युगों से खेल रहा है, तुम भी इससे खेल रही हो
सच बतलाओ गीतों के ये, ताने कैसे झेल रही हो

क़समें रसमें सभी तोड़कर, सूने पथ पर मुझे छोड़कर
वादों वाली पगडंडी पर, आज अचानक फिसल गई हो
केवल मेरे छूने भर से, हद से ज़्यादा मचल गई हो
ओ! धरती की विश्वमोहिनी, तुम पहले से बदल गई हो

हिम्मत मेरे पास नहीं है, मन में मेरे प्यास नहीं है
हाथ छुड़ाकर जाने वाले, कोई भी अब आस नहीं है
विरह प्रणय की नियति है प्रियतम, मेरे मन में रोष नहीं है
मुझे पता है लेशमात्र भी, प्रिये तुम्हारा दोष नहीं है

मैं तो सिर्फ़ अचम्भित इस पर, इतनी जल्दी आख़िर कैसे
पिछली सब यादें बिसराकर, समझौतों पर संभल गई हो
ओ! धरती की विश्वमोहिनी, तुम पहले से बदल गई हो
केवल मेरे छूने भर से, हद से ज़्यादा मचल गई हो