भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कैनवास, रंग और जीवन / मुन्नी गुप्ता
Kavita Kosh से
समन्दर ने
चिड़िया की हथेली में
तूलिका थमा दी ।
और, गहरे विश्वास से कहा —
रचो, अपने भीतर के आकाश को,
अपने मन के कैनवास पर ।
झाँको,
अपने भीतर की अतल गहराई में
औ’ उतरो गहरे, भीतर और गहरे ।
खींच लाओ उस रंग को,
जो तुम्हारी तूलिका पर चढ़ जाए ।
इस तरह
कैनवास पर रचा जा चुका था
एक जीवन ।