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कैसा आततायी है रे तू / अरुणा राय
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					मेरी  
सारी दिशाओं को 
अपने मृदु हास्य में बांध 
कहां गुम हो गया है खुद   
कि  
कैसा आततायी है रे तू  
तुझसे अच्छा तो 
सितारा है वह 
दूर है 
पर हिलाए जा रहा  
अपनी रोशन हथेली  
जो नहीं है रे तू 
तो क्यों यह तेरी  
अनुपस्थिति  
ऐसी बेसंभाल है  
तू तो कहता है  
कि मेरा प्यार है तू 
तो फिर यह दर्द कैसा 
दुश्वार है ...
	
	