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कैसे सहें छतों का बोझा / अश्वघोष
Kavita Kosh से
कैसे सहें
छतों का बोझा
सीलन से भीगी दीवारें ।
पानी-पानी अन्तर तल है
टुकड़े-टुकड़े बिखरा सीना,
देख-देख बुनियादें दुबली
पेशानी पर घिरा पसीना ।
जल्लादों-सी
तेज़ हवाएँ
दौड़-दौड़ चाबुक से मारें ।
आँतों में दीमक की हरकत
आले-खिड़की लदे गोद में,
चिड़ियों ने सब खाल खुरच दी
आमादा होकर विरोध में
कोढ़ सरीखी
चितकबरी-सी
उभर रही तन पर बौछारें ।
कैसे सहें
छतों का बोझा
सीलन से भीगी दीवारें ।