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को अपराधी मो सम आन / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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को अपराधी मो सम आन ?
प्रभु-बंचक, पर-बंचक, पुनि निज-बंचक, बेईमान॥
भटक रह्यौ भोगनि महँ भूल्यौ सब भविष्य कौ भान।
अघमय नित्य कुकर्मपरायन, तजि मानवता-मान॥
मलिन बिचार, कर्म सब गंदे, ममता-मद-अभिमान।
काम-लोभ कौ चेरौ, निसि-दिन करौं पाप हित जान॥
नहीं धर्म कौ भय कछु मो मन, नहिं करतब कौ ग्यान।
बिसरि गए सब-दरसी उर में बसे सदा भगवान॥
जपूँ न नाम तुहारौ कबहूँ, करूँ न कबहूँ ध्यान।
जूता लगैं, तदपि मैं जाऊँ फिरि-फिरि तहँ जिमि स्वान॥
प्रभु मो नीच पतित पाँवर कौं करौ कृपा कौ दान।
जेहि-केहि बिधि राखौ चरननि महँ, निपट निराश्रय जान॥