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कोई कहता है, आँखें खोलो / नरेश अग्रवाल
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माँ प्रसव वेदना में चूर
जैसे कोई वहशी हाथ
रोक रहा है बच्चे को बाहर आने से
और धरती देख रही है रास्ता
एक नया लाल रखेगा कदम
उसकी मिट्टी पर
और करेगी वह स्वागत उसका
मिट्टी के फूल कणों से
सभी कर रहें हैं इंतजार वैसब्री से
थक गया हूँ मैं लम्बी साँस लेते लेते
और अचानक कोई कहता है
आँखें खोलो,
लो वे आ गया
यह चीख उसी की है !