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कोकिला शतक / भाग ५ / विजेता मुद्गलपुरी
Kavita Kosh से
भूख न जानै
बेटा-बेटी
गट्ट!
छेड़-छाड़ नै
लोग देखतै
हौ!
पी परदेशी
याद करलकै
ट्रिन्न!
परदा पीछें
छिपल नायिका
खन्!
साँझ सगाई
बड़का भोरे
तलाक!
वेलनटाइन
प्यार-मुहब्वत
हूँ!
पर के आशें
चढ़ै तार पर
भटाक!
बनचर साथी
काम न देतौ
सुन!
उनका आँगन
जेट पम्प के
घोंऽऽऽ
नीक बात नै
ठीक लगै छौ
जो!
बड़ोॅ खिलाड़ी
सट्टा-पट्टा
वोल्ड!
समय भागलोॅ
टिक-टिक-टिक-टिक
टन्न!
जाति धर्म से
ऊँचा की छै?
देश!
तुष्टिकरण के
राजनीति नैं
बस!
वे मतलब के
ताल लगावै
धा!
फुटपाथोॅ पर
बाल मजूरा
घर्र।
समझौता के
गाड़ी छुक-छुक
छुक।
हे जननायक
रहजन साथें
तों।
बिना छन्द के
कविता पढ़तौ
चल।
अभी उमर छौ
पढ़ै लिखै के
पढ़।