भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोखी नै पुत्र हे ननदो / अंगिका

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कथी के बोढ़नियां हे शीतल सासू- कथी केरोॅ बन्धनमा न हे।
कौनी शबदबाँ न/ सासू हे ऐंगना न बोढ़ाबै न हे
सोना के बोढ़नियां दुल्हैनियां- रूपा केरोॅ बन्धनमा न हे।
कोयलो शबदबाँ न।
भैया खौखी आंगना बॉहड़वै न हे।
कोयलो शबदबाँ न।
बोढ़िए सोढ़िए दुल्हैनिया- होरिया न लगावै न हे।
कि देहरियो न लागि न।
दुल्हन हे रोदना पसारै न हे।
कि देहरियो न लागि न।
घरोॅ से बाहरोॅ हे भइलै- धनसर फुलसर ननदिया न हे।
से पड़िये न गइलै ननदो- भोजोॅ मुख नजरिया न हे।
किए तोरेॅ घटलोॅ हे भोजोॅ हे- अनॅ धनॅॅ समपतिया न हे।
कि किए तोरोॅ अइलोॅ न भोजोॅ हे- नहिरा केरोॅ कुशलवा न हे।
नहीं मोरा घटलै हे ननदो हे- अनॅ धनॅ समपतिया न हे।
कि नहीं मोरा आइलै न- ननदो हे नहिरा केरोॅ कुशलवा न हे-
कि नहीं मोरा आइलै न।
कोखी नहीं पुत्र हे ननदो हे- दुनियां लागै अन्धरहो न हे।
कि एको नहीं पुत्र न।
मचिया बैठली छैई- मैया शीतल ठकुरनियां हे।
कि वहीं तोरा दियतौ ना, भौजौ हे कोखी तोरा पुत्र कि वहीं तोरा
हम्में कैसे दियबै गे बेटी, भौजो कोखी पुत्र न गे
सात सौ बरतिया गे बेटी के दैलकै बरू घुराइये न गे
कि धनसर फूलसर ना, बेटी गे रहलै बरू कुमारी न गे
सातो सौ बरतिया हे सासू हम्मूं बरूं मैगैवै न हे
से बिहैईयै न लियवै ना, सासू हे धनसर फूलसर ननदिया न हे
पत्थरें सेवैतेॅ हे सासू पत्थरो बरूं पसीजै ना हे
कि तोहरा सेवतेॅ न सासू हे- दया तनियो नहीं लागौ न हे।
गाँव के पछियें दुल्हैनियां गे- ठूठी गाछ पकड़िया न गे।
वही तोरा दियतौ न हे- दुल्हन हे कोखी तोरा पुत्र न हे।
वही तोरा दियतौ न।
ठूठी गाछ पकड़िया हे सासू हे- मनहू नहीं भावे न हे।
लगैये न दियवै न सासू हे- चन्दन धन गछिया न हे।
लगैये न दियवेॅ न हे।